सनन-सनन बहे पुरवाई बसंत ऋतु ने ली अंगड़ाई
मन के उदयाचल पर राग भैरवी कोई तान सुनाएं
फूलों पर भौंरे मंड़राये
कोंपल पे छाई तरूणाई
रात जागरण की बेला में
अल्हड़ मनवा ले अँगड़ाई
सौन्दर्य मेरा निखरा जाए मैं अलबेली बन मुस्काऊं
जब तुम प्रियतम साथ हो मेरे बन मंजरी मैं इठलाऊं
नीरधि जैसे मनवा में
लहर तरंग उठी आई
फाग रंग के संग पिया
अंग-अंग हुलसाई
तू चितचोर बड़ा है पाजी बात ना तेरी मानूँ मैं
लाख जतन तू कर ले साजन पास तेरे न आऊँ मैं
प्रेम पिया की बन के बदरी
बरस पड़ी मेरे तन पर
मस्तानी ऋतु अजब सुहानी
वश ना रहा मेरे मन पर
चंदन तन केसर बन महके कमसिन मन बौराई
देखी मोहनी छवि साजन की रोक जिया नहीं पाई
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश