हमने तुम्हारे इश्क़ का एहतराम किया,
अफ़सोस वक्त ने हमें अपना रिज़्क़ बनाया,
पहले लगा तुम मान गये किस तरह तुम्हें मनाएं
तुम्हारी हंसी दीवार पे टगीं फ्रेम के समान हो गये,
तुम्हें परवाह नहीं मेरे दिल के दरवाजे खुले रहे
कोई आये या जाए
जैसे आनन-फानन में तुम सब कुछ भूल गये,
वो गुमसुम से हैं तकदीर के लकीरों ने,
खूब जाल बिछाए
जलते दिए से धुआं सा छाया ऐसा लगता,
जैसे अंधेरे से उजाला शरमाया हो,
किस तरह तुम्हें मनाएं
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश