ओ री पूछो ना विरह कहानी
अनल बन स्मृति बरसे
नैना श्याम भेंट को तरसे
तू मनमोहन, छलिया, बनवारी
प्रेम रचना में मैं फसी बेचारी
बिछोह तपन में गात झुलसाई
सासु ननद सब खिसियाई
सेज सजन से हुई पराई
कुपित अंतस मोरा अलसाई
गांव-नगर सब कहे बावरी
कँकुडी मार मोहे दुरावे
सनकी नाम मोरा धराई
मैं मतिमारी बड़ अभागी
मुझ सी अधमी और ना कोई
काहे ना समुझत विवशता हमारी
तू चितचोर महा उन्मादी
व्यग्र मन हरि दरश को प्यासा
हृदय में कान्हा प्रेम शूल बन समाई
मोह ना लागे मोरी अदिन पर
क्या श्याम तुम्हरी वज्र की छाती
द्रवित होत काहे ना मोह पर
क्या तुम गोविंद तब आओगे
अंत मोहे जब गह लेगा
देह पर काल प्रतिबिंब मंडराया
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश