माँ वसुंधरा
शान्तिप्रिय, हरित वसना
ब्रह्मांड की तुम हो ज्योत्सना
प्रकृति स्वरुपा
हे रत्नगर्भा
लालिमा युक्त है तेरी काया
ओज से तुम हो अलंकृत
शीश शोभित हो रहा
हिमालय शिखर
गोद में तेरे किल्लोल करती
अनगिनत निर्मल सरिता बहती
संस्कार
तेरी सतह पे सजा
संस्कृति, सभ्यता, शाश्वत मूल्यों
की तुम हो करुण देवी
निर्विकल्प
छवि तुम्हारी
तेरे समक्ष नतमस्तक हुए
ग्रह, नक्षत्र, दिवाकर सुधाकर
निश्छल
स्वभाव तेरा
तुम जगत की स्वामिनी
योगनी रुप तेरा अति मनभावनी
असंख्य
संपदाओं की तुम हो दाता
जलधि तेरे आँचल में सजता
प्राकृतिक वैभव से सुसज्जित तेरा द्वारमंडप
तेरे ममत्व के
प्यासे दामोदर
रुप अनेक धर देवता भी यहां पधारें
शीर्ष मंडल पर स्वयं, स्वयंभू विराजें
हम हैं तेरे
अंश माते
स्वार्थ में जकड़कर त्रुटि हो गयी भारी
अपराध को क्षमा करो, समस्त क्लेश हर लो
कृपा करो
हे करुणामयी
तेजस्विता माँ वसुंधरा
अबोध बालक हम हैं आ गिरे द्वार तेरे
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश