अन्नपूर्णा: जसवीर त्यागी

एक दिन बात-बात में
उसने बताया
कि अमूमन हर रोज
कोई न कोई भूखा आदमी
भोजन करता है हमारे घर

मुझे यह बहुत प्रेरक सीख लगी
दुनिया का हर छोटा-बड़ा
अच्छा-बुरा काम
आदमी भूख के लिए ही तो करता है
बस भूख के अर्थ अलग-अलग होते हैं
हर इंसान के लिए

हमारे पौराणिक नीति ग्रन्थों में भी
किसी भूखे को भोजन कराना
मानव-धर्म कहा है

उसका किसी भूखे को
पेटभर खिलाना
मुझे एक कविता लगा
एक ऐसी कविता
जब तक धरती पर मनुष्य होगा तब तक
लिखी-पढ़ी जाती रहेगी 

ओ! मेरी अन्नपूर्णा
तेरा घर और घड़ा 
कभी खाली न हो
तेरे द्वार से कभी कोई
रीते हाथ न जाये

तेरे पाले हुए पशु-पक्षी कभी मरे नहीं
तेरे लगाये हुए पेड़- पौधे
कभी मुरझाये नहीं

तेरा आँगन सदा खुशियों से भरा रहे
तेरे अपनेपन और आत्मीयता के आकाश में
सुख-समृद्धि
और सम्पन्नता के
चाँद-सूरज और तारे
चमकते रहें सदा

जसवीर त्यागी