रात होने को है: रोहताश वर्मा

थम गयी है घंटियां मंदिरों की
लौट चुके हैं पंछी नीड़ो में,
लौट रही है धरा भी शीतल होने को,
समेट रहा है अरूण भी
लालिमा युक्त किरण-धेनुओं को,
ऐ पंथी! फिर तू क्यों नहीं उठता?
जब सितारों से बात होने को है।
अभी ढ़ल रहा है गोधुलि पहर,
सुनो! रात होने को है।।

जीव-जन्तुओं की चहलकदमी रुकी,
वो धवल-शिखर भी सोने चला।
राग छोड़ी है अब कीटों ने,
सागर-तट शोरमय होने चला।
नदियां शांत बहने लगी,
झरनों ने भी रूख़ ढ़ीला किया।
रुई से उतरते श्वेत घन,
हल्की बारिश का रंग मिला दिया।
भीग जाएगा तेरा पथ, दुकुल,
ठिठुरते हालात होने को है।
शाम लेने लगी है अंगड़ाई,
सुनो! रात होने को है।।

है पथ यह सुनसान तेरा,
तू अकेला राही घर को चला।
थका हारा न मान खुद को,
कदम बढ़ा, तू भय को जला।
सुकून पल तुम्हारा होगा,
सृष्टि का श्रृंगार देखता चल।
सुबह होना, रात का भी ढ़लना,
है समय चक्र सदा अटल।
बाजुओं में तू भर हिम्मत,
मेहरबान करामात होने को है।
सितारे देने लगे हैं दिखाई,
सुनो! रात होने को है।।

रोहताश वर्मा ‘मुसाफिर’
हनुमानगढ़, राजस्थान-335523
संपर्क-9784055613