मुरझाते उपवन को प्रियतम,
रसवती कर जाओ
कोमल कंज खिलूँ बन जिसमें,
तुम पुष्कर बन जाओ
नैन थके हैं राह निहारत
रिक्त प्रेम का है प्याला
विरह अग्नि में तपते मन की,
शान्त न होती अब ज्वाला
मेरे प्रियतम तुम सावन में,
बन साक़ी आ जाओ
लालायित अधरों पर मेरे,
अमिय बूँद बरसाओ
चटक चाँदनी हो रातें
उर अंतर का तम मिट जाये
लिपट रहूँ बाँहों में तेरे ,
ऐसा मधुर वो क्षण आये
नैन नीर अब बनकर बैरी ,
आँखों का काजल धोये।
चातक मन वेचैन रात भर,
देख चाँद नही सोये ।।
दीपा मन व्याकुल, याद में तेरे,
देर करो ना अब प्रियवर
तन में अगन लगाये अब ये ,
धीमे-धीमे पवन डोल कर
मिटे ताप मेरे मन की प्रितम ,
बन बादल तुम आओ
बरसो ऐसे झूम के साजन,
शीत ह्रदय कर जाओ
अरविंद शर्मा अजनबी
जनपद-महराजगंज, उत्तर प्रदेश
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