दिल की बात जुबां पर लाना, मुझको मुश्किल लगता है
इससे ज्यादा राज छुपाना, मुझको मुश्किल लगता है
बेकदरों से प्रीति निभाना, मुझको मुश्किल लगता है
सन्मुख आकर नजर चुराना, मुझको मुश्किल लगता है
तुमसे बिछुड़ कर जीते जाना, मुझको मुश्किल लगता है
खून के आँसू और बहाना, मुझको मुश्किल, लगता है
हम अपने उसूल तोडें, खुद अपना गिरेबां चाक करें
अहले-जहां का साथ निभाना, मुझको मुश्किल लगता है
आज हाथ में हाथ है आओ, थोडा सफर और तय करलें
कल यह लम्हा लौट के आना, मुझको मुश्किल लगता है
ऐ ‘नितान्त’ केले के पौधे, जैसा तन ले कर तेरा,
इक बबूल का साथ निभाना, मुझको मुश्किल लगता है
समीर द्विवेदी ‘नितान्त’
कन्नौज, उत्तर प्रदेश