जसवीर त्यागी की कविताएं

मकसद

जीवन में सब कुछ 
साफ सुथरा 
संपूर्ण नहीं मिलता

बहुत कुछ
आधा-अधूरा भी मिलता है

जिसे हम अपूर्ण अप्राप्य समझते हैं

सही अर्थों में
वही हमें

जीवन जीने का 
मकसद देता है।

खिलना

दूर सुनसान में भी
खिलता है कोई फूल

फूल को नहीं पता
उसको देखने वाला
कोई नहीं है आसपास

फूल की प्रकृति है
खिलना और महकना 

चाहे वह गुलज़ार में हो
या वीरान में।

जगमग

घर में मरम्मत का कार्य चल रहा है
सुबह से ही
वह काम में डूबी है

साँझ घिरने को है
मिस्री मजदूर समेटने लगे हैं अपना सामान
परिवार की स्मृतियों की घँटी
खनखनाने लगी हैं

सारा घर अस्त-व्यस्त रेगिस्तान-सा 
फैला है निगाहों में

बिखरे सामान के बीचोबीच
वह उठी चमकती चपला-सी

दुर्गम पर्वतों के बीच 
जैसे राह बनाती है जल धारा
वैसे ही स्त्री ने
बिखरे सामान के बीच 
बनायी थोड़ी-सी जगह

हाथ मुँह धोकर
प्रज्वलित किया दीया

बिखरे फैले सामान में
दूर से ही जगमगा उठी
दीये की लौ।

जरूरत

स्कूल से घर लौटते हुए
बेटी ने कहा-

पापा 
किसी बूढ़े आदमी के रिक्शा में ही बैठना

मैंने पूछा-क्यों?
वह बोली-

हर किसी को जल्दी है
मंजिल पर पहुँचने की
जवान के रिक्शे पर बैठते हैं 
ज्यादातर लोग

बूढ़े रिक्शा धीरे खींचते हैं
कम मिलती है सवारी
उन्हें भी पैसों की जरूरत होती है
तभी चलाते होंगे रिक्शा

वरना 
किसे अच्छा लगता है ?
आराम करने की उम्र में
काम करना।

पत्थर

मैं एक पत्थर को निहारता था
उसकी कठोरता और अडिगता 
मुझे बांधती थी

एक रोज
मैं पत्थर के पास गया

उसके सान्निध्य में 
कुछ समय बिताया
सप्रेम उसे सहलाया

खुद की समझ पर
दुःख हुआ मुझे

जिसे अब तक
मैं पत्थर समझता रहा

वास्तव में 
वह पत्थर नहीं 
एक फूल था।

जसवीर त्यागी