प्रेम में भीगे नयन, कुछ कहते हैं तुमसे सजन
मूक हृदय को मेरे प्रेम का संवाद दो
उठ रही है मन में मेरे क्यूँ विकलता की लहर
प्रेम के इस भाव को अब प्रेम का सम्मान दो
बढ़ रही है तृप्ति मन में, चुभ रही मीठी कसक
बुझती चेतना में, प्राण आकर फूँक दो
नयन मेरे हैं तरसते, देखने को बस इक झलक
पाऊँ अवलंबन तेरा हमको यही उपहार दो
क्षणिक जीवन को मेरे, स्नेह से कर दो सजल
पथ भ्रमित मन की नदी को अब नवल धार दो
संकोच ले मन में हृदय का, झेल रही विरह तपन
आकुल उर के पटल को शीतल विस्तार दो
हाथ मेरा थाम लो प्रभु, एकल चल ना पाऊँ डगर
कल्पित भावनाओं को प्रीत का परिधान दो
पावन पूज्य दरस तेरा कर सकूं मै हर दिवस
कुम्हलाये हुए अधरों को मधुमास की मुस्कान दो
गह सकूं मैं प्रीत तेरी, बस तुम्हे ही करूं वरण
हर जनम में लगे तेरी लगन, ऐसा अधिकार दो
दो हमें वरदान माधव, साकार हों सभी सपन
भक्ति हमारी अमर हो धरा पर ऐसा अभिमान दो
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश