आत्मविश्वास: जसवीर त्यागी

वह मुझे हर रूप में
आत्मीय लगती है

सबसे अलग
सबसे सुंदर

जब अपने काम में
डूबी रहती है वह

और उस काम को
सफलता और सार्थकता के
सांचे में सुघड़ता से ढालती है

वह काम अपने होने में
दूर से ही मुस्कुराता हुआ
चमकता है

जैसे चमकता है
किसी विजेता में
आत्मविश्वास

गेरूए वस्त्र धारण किये
चार वैरागी
माघ माह की सुबह-सुबह
गली में गा रहे कोई भक्तिपरक गीत

दो नेत्रहीन
दो नेत्रधारी
दो के पैरों में चप्पल
दो नंगे पांव

एक के हाथ में ढोलक
दूजे के हाथ मंजीरा

चारों एक दूसरे के स्वर में
स्वर साधते-मिलाते हुए
गा रहे वैराग्य-गीत

पता नहीं उनके स्वर में
कौन-सा दर्द था ?

अंतस में एक हूक-सी उठती
लगता स्वर गले से नहीं
आत्मा से निकल रहा है

सुनने वाला गुम हो जाता
गीत की गहराईयों में
जब वे एक सुर में गाते-

प्रभु मिटा दे
मेरे जन्म-मरण के फेरे
कोई नहीं मेरा बिन तेरे

जसवीर त्यागी
दिल्ली