सुबह-सुबह
एक अनमोल दृश्य देखा
बारात सज रही थी
बारातियों के चेहरों पर
उमंग और उत्साह की लहरें उफान पर थीं
उनकी बातचीत के मैदान में
मस्ती भरे शब्द खेल रहे थे
रंग-बिरंगी पोशाकों की पतंग
उड़ रही थीं आत्मीयता के आसमान में
बहुत सारी ग्रामीण स्त्रियाँ
दूल्हे को घेरे
कोई लोकगीत गा रही थीं
गीत के बोल
खुशियों की खुश्बू से महक रहे थे
स्वर में मिश्री-सी मिठास थी
दूल्हे के चेहरे पर
ताजा खिले पुष्प-सी पवित्रता और चमक थी
दुनिया की तमाम
अनमोल इच्छाओं में
किसी अपने को दूल्हे रूप में देखना भी
शुमार है
कभी-कभी कोई सुबह
मीठे दूधिया रसीले सिंघाड़े-सी होती है।
जसवीर त्यागी