कहने को यह छोटी सी ज़िन्दगी है, यूं ही नहीं गुजरती है
राह में इसकी कभी धूप तो कभी शीतल छांव मिलती है
ता उम्र एक तनाव में रहती है पर, न कहती न ठहरती है
जीते हैं यहां लोग अपने मद में और ताव सी यह बहती है
अपनों से सियासत कर लोग आगे निकलकर खुश होते हैं
मगर इंसानियत तो आज भी केवल दबाव में ही रहती है
चारों तरफ इस हद तक आज बर्बादी का मंजर देखते हैं
बहुत खुश रहते हैं जब तलक यह सिर्फ गांवों में बसती है
कभी अपनों की भीड़ तो कभी खाली मकान सा लगती है
दोस्तों कभी गमों की धूप, कभी खुशियों की छांव लगती है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश