मेरे पापा: अंतिम

हर सांस सी छुट जाती है, हर खव्वाइश भी टूट जाती है
जब उस अपने का हाथ छूटा था, शिकायतें थी उससे बहुत
अब शिकवा सी लगती है
बड़ा जिद्दी है ये एक बेटी का दिल
उसके जाने की खबर आज तक बी अफवाह सी लगती है
दिल मे गिला दबाये बेठे है, लगता है
हर पल जैसे हम तो उनके ही इंतजार में बैठे हैं
झूठे से लगते हैं अब उसके बोल
मीठा सा लगता है उसके बारे में बोलना
उन बोलों से दिल सा बैठ जाता है
आँखों का दरिया ऐंठ सा जाता है
आँखे भी कहने लगी है रोने दे हमें
उस के जाने का गम, हम से नहीं सहा जाता है
उन के जाने की बातों को हम हँसी सी समझते थे,
वो हमे छोड़ सबको समझते थे,
उन्हें ही पता था रिश्तों के जाल में हम बड़ा उलझते हैं
हर उस इंसान से नफरत सी लगती है
जो उनके जाने की खबर को हादसा कहता है
कोई नहीं जानता हमारे टूटे सपनों को
कोई नई जनता हमारी छूटी ख्वाहिशों को
सब के लिये एक इन्सान गया है
सब कहते हैं ये भगवान की माया है
यूं कोई नहीं जानता एक बाप का जाना
धूप में घने पेड़ जैसी होती है, उस बाप की ठंडी छाया

अंतिम