मां आखिर मां होती है जो सारे दुखों को हर लेती है
सहती है न जाने कितनी ही तकलीफें औरों की खातिर
तब कहीं जाकर तुम्हें यह दुनिया नसीब होती है।
कहते हैं इस मां के कदमों के तले ही जन्नत होती है
उसका परिवार ही उसकी सारी मिल्कियत होती है
यह तो ख़ुदा की बक्शी हुई कोई रहमत होती है।।
भोर में सुनाई देने वाले मधुर संगीत सी पावन होती है
दुख तकलीफ हो कितनी चेहरे पर सदा मुस्कान होती है
कृष्ण की गीता में लिखे हुए पावन श्लोक सी होती है
अधिकारों की रक्षक सी कभी कर्त्तव्यों की पोषक सी
रहती है दुआ हरदम सदा ही जिसके होंठों पर दोस्तों!
ऐसा करने वाली सिर्फ और सिर्फ एक मां ही होती है।।
अपनी नींदें भुलाकर जो सुलाती है कलेजे के टुकड़ों को
अफसोस बड़े होने पर वही उसे खून के आंसू रूलाती है
बड़ी से बड़ी मुसीबतें झेलती है वह उम्र भर लेकिन
उनकी एक छोटी सी तकलीफों से वह खुद टूट जाती है
यूं तो एक अच्छी मां हर किसी के पास ही होती है
मगर एक अच्छी सन्तान भी कहां उसके नसीब में होती है
कौन है जो बिना स्वार्थ के काम करता है मगर
एक मां ही है जो बिना स्वार्थ के सब करती है
ग़म के बदले सभी को बस खुशियां ही देती है
एक भी आंसू न देख पाए जो अपनों की आंखों में
हमारी आंखों में आने से पहले वो खुद रो लेती है
क्योंकि मां तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मां ही होती है
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश