ये बचपन की दोस्ती, ये दोस्ती भी क्या खूब होती है
ईर्ष्या, द्वेष और अहम की भावना इससे कोसों दूर होती है
फिक्र होती है जमाने की और ना ही चिंता कमाने की
इसमें ना कोई रीत होती है यह तो बस निश्छल बहती जाती है
यह बचपन की दोस्ती, ये दोस्ती कुछ ऐसी होती है
दोस्तों का हर दुख अपना और हर खुशी अपनी होती है
इस दोस्ती में यूं तो एक दूसरे से झगड़ना भी होता था
हो जाए चाहे कितनी कट्टी मगर अगले पल मिलना भी होता था
जब सभी दोस्त मिलकर संग स्कूल जाया करते थे
एक दूसरे के टिफिन मिल बांट कर खाया करते थे
जिन्हें हम मन की सारी बातें बता दिया करते थे
खेलते खाते और फिर ढेर सारी मस्तियां क्या करते थे
वो सुबह शाम गली के नुक्कड़ पर मिलना याद आता है
बारिश में नंगे पैर पानी पर उछलना आज भी मन को बहुत भाता है
याद करती हूं आज, उन दोस्तों को जाने कहां गुम हो गए
कहां हैं? कैसे हैं? बिछड़े हुए उनसे, न जाने कितने जमाने हो गए
वो हंसते मुस्कुराते दिन न जाने कहां गायब हो जाते हैं
मिलते थे जो गली के नुक्कड़ पर न जाने किन शहरों में खो जाते हैं,
दोस्त! जो बड़े होने पर जाने क्यूं और कैसे बिछड़ जाते हैं
सच पूछो तो वो बचपन के दोस्त, आज की बहुत याद आते हैं
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश