मोह के सारे बंधन से
होकर के मुक्त चली
देखो गिरधारी मन में
तेरे प्रेम की ज्योति जली
माया तज कर लोक की
आस तेरी ही धरूं प्रभु
जीवन के मध्य पहर में
अपनी कृपा दृष्टि रखना हे प्रभु
मत डालो पहरा भक्ति पे
ना तौलो मेरे भावों को
तन पे घिरा काला अंबुज
अब समझो विरह बेधन को
जिस नाम से तुम्हें पुकारूँ मैं
अधरों पे वो शब्द सजे
हृदय में तेरा रूप सजाऊँ मैं
हर ओर हरि कीर्तन गूँजे
नयनों से नित जल बरसे
सरिता की कलकल सुन लो
बलुहट इच्छाओं के भवन पर
पावस निर्मल नीर बन बरसो
व्यवहार भला क्यूँ खार तेरा
हर पल निभाऊँ निज धर्म अपना
धरती के कण-कण में तुम हो
तुझमे ही समाया संसार मेरा
मन खग बन फिरे जगत में
ढूँढूँ तिनकों-तिनकों में
नयनों से हो जाते जो विस्मृत
मच जाती धक-धक पर हलचल
विरहा के इस प्रबल वेग में
दह ना जाये मेरी कामना
समय चक्र पल-पल छल रहा है
आ जाये ना जीवन की संध्या
प्रार्थना राय
ग्राम पोस्ट- गौरा
जनपद- देवरिया, उत्तर प्रदेश