डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
मन से मन का दीप जलाकर,
जगमग सा उजियारा करदो।
घृणा द्वेष सब दूर भगाकर,
हर घर में खुशहाली भर दो।।
झुलस रही नफरत जो दिलों में,
सौहार्द प्रेम सागर से भरदो।
तन से गरीबी भी हो चाहे,
मन की अमीरी से जग भर दो।।
ज्योति पर्व की इस बेला को,
दीप जलाकर आगाज कर दो।
आलोकित मन आंगन सब को,
खुशियों से तुम पुलकित कर दो।।
जीते है खुद के ही लिए सब,
औरों के लिए भी जीकर देखो।
भेदभाव और ऊंच नीच की ,
दीवारों को तोड़ के देखो।।
सौरभ सुमन भरे हाथों से,
अतिथि को आमंत्रित कर दो।
श्रंगारित ज्योतिर्मय मन से ,
मां लक्ष्मी का आदर कर दो।।
फुलझड़ियां खुशियों की छुड़ाकर,
मधुर बोल से मुंह मीठा कर दो।
घृणा द्वेष सब दूर भगाकर,
घर घर में खुशहाली भर दो।।
लेकर साथ सभी को अपने,
दीप पर्व को तुम चमका दो।
आशीष मिले हर एक मन से,
दुआओं से सारा जहां महका दो।।
मन से मन का दीप जलाकर,
जगमग सा उजियारा का दो।
घृणा द्वेष सब दूर भगाकर,
घर घर में खुशहाली भर दो।।