अंजना वर्मा
ई-102, रोहन इच्छा अपार्टमेंट
भोगनहल्ली, विद्या मंदिर स्कूल के पास,
बेंगलुरु-560103
धूप अनमोल हो गई अब तो
चाह दिल में अभी भी बाकी है
आते-जाते रहे कई मौसम
कुछ तो आना अभी भी बाकी है
बदले हैं दिन बदलते जाते हैं
गए जाड़ों के दिन बुलाते हैं
ख्वाब की खुश्बुओं में डूबा मन
सच होना अभी भी बाकी है
धूप-किरणें गगन से झरती हुईं
हवा गुनगुन-सी बात करती हुई
शुरू जो हो गया कलम का सफर
धूप के पन्नों पर वो बाकी है
माना सब कुछ वही नहीं रहता
सारी चीज़ें बदल ही जाती हैं
पीछे छूटे हुए मुकामों की
याद क्यों दिल में अब भी बाकी है?