रूची शाही
अगर तुम थे, क्यों नहीं कहा मुझसे
कि सोना तुम सुख की नींद
मैं हमेशा रहूंगा तुम्हारे सपनों में
तुम्हें थपकियां देने के लिए
अगर तुम थे, तो क्यों नहीं कहा मुझसे
कि अपने अकेलेपन से कभी न डरना तुम
मैं रहूंगा तुम्हारे मन की चौखट पे बैठा हुआ
कि कोई बुरा ख्याल कभी छू न पाए तुमको
अगर तुम थे, तो क्यों नहीं कहा मुझसे
कि भींच लूंगा तुमको अपनी बाहों में
चूम लूंगा तुम्हारी पलकों के तमाम आंसू
और सजा दूंगा तुम्हारे होठों पे उस मुस्कान को
जो बार-बार छिन जाती है तुमसे
नहीं तुम नहीं थे
तुम कभी नहीं थे मेरे
मैंने हमेशा एक भ्रम बनाए रखा
खुद को बहलाए रखा
कि इतनी बड़ी दुनिया में कोई मेरा भी है