रूची शाही
मैं चाहती थी
कभी रोते तुम भी मेरे लिए
पुरुष की आंखों में आसूं के
एक कतरे का भी होना
उसके भीतर उमड़ते हुए सागर से
गहरे प्रेम का साक्षी होता है
मैं नहीं पूछूंगी तुमसे
कि तुम क्यों नहीं रोए
मेरे लिए कभी
तुम पुरुष शायद रोना नहीं जानते
पर इतना बता दो
क्या आंसू पोछना भी नहीं जानते..