रूची शाही
रात भर अल्फा बीटा गामा को
सोचते-सोचते लगा मुझको
जिंदगी भी रेडियोएक्टिविटी सी हो गई है
जो अपने आप विघटित तो हुई जा रही है
पर ऊर्जा को उत्सर्जित करने में असमर्थ है
आवेशों से परिपूर्ण स्वभाव
न्यूट्रॉन सा उदासीन होने लगा है
और धीरे धीरे जिजीविषा के परमाणु
अब अभिक्रिया करना भूल रहे हैं
और खुद ही मिटा रहे हैं अपनी संरचना
सोचती रही मैं सपनों का टूटना
कौन सा परिवर्तन होता होगा
भौतिक या रासायनिक
जरूर रासायनिक ही होगा
क्योंकि इनसे उपजे आंसू भी
उदासीन अभिक्रिया के ही उत्पाद होंगे