सोनल मंजू श्री ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश
भूख नहीं लगती है स्त्री को, करवाचौथ निभाने में,
चाहे कितनी देर लगा ले चाँद आज नज़र आने में,
उम्र बड़ी होगी या नही ये तो किसी को पता नहीं,
आशा है प्यार बढ़ ही जायेगा यूँ त्याग दिखाने में।।
आज जी भर संवरती, सोलह श्रृंगार करती है,
सज के सुर्ख जोड़े में चाँद का दीदार करती है,
उपहार मिले या ना मिले उसे कोई परवाह नहीं,
पति की चाहत मिले, इसी का इंतजार करती है।।
तुम्हारा नाम अपनाती है उसका मान बन जाना तुम,
जहाँ पर पा सके सुकूं ऐसा विश्राम बन जाना तुम,
परीक्षा प्रेम की दे देगी चुनेगी जंगलों के काँटे भी,
पत्नी गर सीता बन जाती है तो राम बन जाना तुम।।