संदीप ठाकुर
जबलपुर
भूला तो तुझको मैं इक पल भी नहीं हूं
याद से लेकिन मैं बोझल भी नहीं हूं
माना तेरे बिन मुकम्मल भी नहीं हूं
प्यार में लेकिन मैं पागल भी नहीं हूं
है तेरी मजबूरियों का भी भरोसा
पर वफ़ा का तेरी क़ाइल भी नहीं हूं
ठहरे पानी सा नहीं संजीदा लेकिन
बहते दरिया जैसा चंचल भी नहीं हूं
दायरे से बाहों के हूँ दूर माना
आंख से पर तेरी ओझल भी नहीं हूं
भीगी दीवारों से हमदर्दी है लेकिन
धूप की तेज़ी का क़ाइल भी नहीं हूं
पांव रख पत्थर हूं कीचड़ में पडा हूं
तू गुज़र जा मुझ से दलदल भी नहीं हूं