मकाँ में एक छत के नीचे दीवारें बहुत सी हैं
वो अक्सर एक दूजे से कुछ ना कुछ बोलती हैं
जहाँ इंसान आपस में नज़रें ना मिलाते हों,
ये बेजाँ ईंट की दीवारें भी इंसानों पे हँसती हैं
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पल ने पूछा एक पल रूक कर मुझ से मिलोगे किस पल
मैंने कहा जीवन के सफर में फुरसत होगी जिस पल
चलता रहा मैं वक़्त के संग संग आगे क़दम बढा कर
ढूँढ ना पाया कभी कहीं वो फुरसत के कुछ एक पल
-सतेन्द्र मोहन शर्मा