और क्या कुछ दें अभी- डॉ उमेश कुमार राठी

बन सँवर उपहार माँगा एक दिन उसने कभी
बाँह में लेकर कहे हम और क्या कुछ दें अभी

नभ पटल पर लग रही है यामिनी फिर से धवल
चाँदनी का रूप प्रेमिल लग रहा सबको नवल
चाँद पूछा चाँदनी से और क्या कुछ दें अभी
बाँह में लेकर कहे हम और क्या कुछ दें अभी

फूल की पाँखुर खिलीं श्यामल अली को देखकर
गूँजता चंचल भ्रमर कोमल कली को चूँमकर
बाद में पूछा मधुप ने और क्या कुछ दें अभी
बाँह में लेकर कहे हम और क्या कुछ दें अभी

प्यास मिटती सिंधु की केवल नदी के नीर से
सौंपता जब रत्न माला मौज मिलतीं तीर से
पूछता सागर सरित से और क्या कुछ दें अभी
बाँह में लेकर कहे हम और क्या कुछ दें अभी

-डॉ उमेश कुमार राठी