सुनों,
ज़रा देखो ना
खिलखिलाती धूप
गुनगुनाती शाम
मचलती ये रात
एहसासों की ज़मी
खुला आसमां
टिमटिमाते जुगनू
चमकते सितारे
पुकारे वो चंदा
आँखों का ये काजल
बहके जुल्फों का बादल
छनछनाती पायल
मुस्कुराती ये बिंदियाँ
हाथों का कंगना
और तुम्हारे पसंद की साड़ी
फबते है ना
ये सब अपने-अपने रंग मे
महकते है अपनी फिजा में
गुरुर भी ना और
साथ सादगी भी कमाल
मेरे हाल से मिलते
तेरे दिल का ख़्याल
कि गुफ़्तगू भी तुमसें और तुम्हीं से ये दुनिया
तुम्हीं से सजे ये मेरा सोलह श्रृंगार