सुबह का सुंदर समय तुमने कहाँ देखा
रोज सूरज झाँकता मन में तभी तुम पास आती
कोई पुराना गीत गाती
आज नदी दूर से बहती चली आयी
किस शहर का यह किनारा
धूलि धुसरित देह पर ग्रीष्म की छाया
अगले पहर बरसात भी आया
यह बादल कहाँ से उमड़ आया
किस हर्षित मन से आकाश ने जल को बरसाया
सिमटता जा रहा ताप का घेरा
सबका अब यहाँ डेरा
धरती सूरज का साल भर में तब डालती फेरा
-राज़ीव कुमार झा