Thursday, September 19, 2024
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हिन्दू संस्कृति में पर्यावरण सरंक्षण का विशेष महत्व रेखांकित करती श्रावणी अमावस

प्रियंका कौशल

भोपाल (हि.स.)। श्रावण मास का तो वैसे ही हमारी संस्कृति व पूजा-अर्चना में विशेष महत्व है। इस मास में कई प्रमुख तीज-त्यौहार आते हैं। उसी में से एक है हरियाली अमावस।

हरियाली अमावस का पर्व श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेंजी कैलेंडर में इस वर्ष 4 अगस्त को श्रावणी अमावस पड़ेगी। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन होता है। इस तिथि का मात्र धार्मिक महत्व भर नहीं है, हमारी परम्पराएं हमें पर्यावरण सरंक्षण का भी ज्ञान देती हैं। भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। इस दृष्टि से भी इस तिथि का बड़ा महत्व है। इस दिन वृक्षारोपण कर प्रकृति संरक्षण का शुभ कार्य भी किया जाता है।

भगवान का पूजन

अर्चन करने के बाद शुभ मुहूर्त में वृक्षों को रोपा जाता है। इसके तहत शास्त्रों में विशेषकर आम, आंवला, पीपल, वटवृक्ष और नीम के पौधों को रोपने का विशेष महत्व बताया गया है।

हरियाली अमावस्या का धार्मिक महत्व अनेक पुराणों और शास्त्रों में वर्णित है। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का श्रेष्ठ समय माना जाता है। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और अन्य पूजन सामग्रियां अर्पित करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। नारद पुराण के अनुसार श्रावण मास की अमावस्या को पितृ श्राद्ध, दान, हवन और देव पूजा और वृक्षारोपण आदि शुभ कार्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

शास्‍त्रों और पुराणों में इस अमावस्‍या को व्रत करने का कई गुना फल प्राप्‍त होता है और व्‍यक्ति के लिए मोक्ष का द्वार खुलता है। इस तिथि पर पितृ तर्पण करना, पिंडदान करना और श्राद्ध कर्म करने का बहुत ही उत्‍तम फल देने वाला माना जाता है।

इस दिन कई शहरों व गांवों में हरियाली अमावस्या के मेलों का आयोजन किया जाता है। गुड़ व गेहूं की धानी का प्रसाद दिया जाता है।

किसान इस तिथि पर गेहूं, ज्वार, चना व मक्का की सांकेतिक बुआई करते हैं। इस दिन नदियों के किनारे स्नान करने की भी परम्परा है। हरियाली अमावस पर दान पुण्य का भी विशेष महत्व है। अन्न, वस्त्र व धन का दान करने से पुण्यों का संचय होता है। यह पर्व लोक परम्पराओं और मान्यताओं को भी सुदृढ़् करता है।

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