माँ- शशांक रावत

जीवन में छाए तिमिर को,
प्रकाशमान कर जाती है
हाँ यह सच है, माँ जादू कर जाती है

बचपन मे नींद न आने पर,
लोरी खूब सुनाती थी
अपने बच्चों की हर गलती पर,
डांट खूब लगाती थी
गर्मी के मौसम में,
पंखा हमे झुलाती थी
खुद भूखी रहकर हमको,
अपने हाथों से भोजन,
हमें खिलाती थी
बच्चों की डगमग नैया को,
साहिल तक पहुँचाती है
हाँ यह सच है, माँ जादू कर जाती है

बचपन बीता जवानी आई,
माँ ने हमें नई सीख सिखाई
शादी के बंधन में बांध कर,
माँ ने एक और रस्म निभाई
जीवनसाथी के संग कैसे हमें
जीवन में आगे बढ़ना है,
प्यार और विश्वास के पथ पर,
हमको कैसे चलना है
यही ज्ञान की बातें माँ,
चुपके से कानों में कह जाती है
हां यह सच है, माँ जादू कर जाती है

जीवन के अंतिम पड़ाव में,
यह दुख मैंने झेला है,
अपनी प्यारी माँ के बिन,
बेटा आज अकेला है
हे विधाता तूने ये कैसा,
खेल मेरे संग खेला है
छोड़ गई मेरी माँ मुझको
उसकी कमी हर रोज मुझे सताती है
हाँ यह सच है, माँ जादू कर जाती है

-पं शशांक रावत ‘शिखर’
कवि, गीतकार
मोबाइल- 9340345351