एक औरत…
जब अपमान, तिरस्कार
सहते सहते क्षुब्ध हो जाती है,
बटोर कर अपने सभी टुकड़े
पलायन करना चाहती है तो..
फेरों की, कर्त्तव्यों की हथकड़ियां
ममता की बेड़ियां
जकड़ लेती है उसे और
याद आ जाते हैं माँ-दादी के शब्द
जिस देहरी पर ब्याह कर जा रही
उस देहरी से सदा के लिए तो
अर्थी ही जायेगी।
रोक लेती हैं उसे मर्यादा
की वर्जनायें और वह
रोक लेती है बढ़ते कदम
उसी आँगन में… कई हिस्सों में
फिर से बिख़र जाने के लिए
-राजश्री