जेठ की दुपहरी है,
सूरज उगल रहा है आग,
हवाओं ने भी
बदला है अपना मिजाज।
पंछी पेड़ों में छुप गये हैं,
मानव घरों में घुस गए हैं।
रामू मोची,
इस भीषण गर्मी में भी,
फुटपाथ पर ड़टा है।
कटी फटी छतरी के सहारे,
घूप से अड़ा है,
बीच बीच में,
गिन लेता है।
टाट के नीचे रखी रेजगारी,
शाम के आटे दाल का,
हिसाब लगाता रहता है।
जब तब पेटी का,
तकिया बना, सुस्ता लेता है।
गर्मी से बचने,
गर्म पानी पी लेता है।
रामू को धूप ताप नहीं सताती है,
परिवार की भूख सताती है।
इसीलिए रामू,
जेठ की दुपहरी सह जाता है।
हर ग्राहक जैसे,
ठंडी हवा का झौंका लिए आता है।
दोस्तों! तुम ही कहो,
रामू के लिए धूप बड़ी है,
या भूख।
निश्चित ही
धूप से बड़ी है भूख।
-डॉ मीरा रामनिवास