ढर्रे पर आ गया है सफर,
निकल चुके हैं…
छोटे-मोटे घुमाव,
गलियाँ कठिनाईयों की छूट गईं पीछे,
कष्टों के शहर भी दूर हुए,
एक विशाल…
सीधी सड़क पर…
निकल चुका जीवन का वाहन…
परंतु
समय-समय पर यादों के गड्ढे
चौंका देते यकायक,
समतल जीवन सफर में…
बे-बात…
भर आती हैं आँख,
घुमाव से मुक्त है मगर…
इस हाईवे पर देखो
धूल ही धूल है
-बुशरा तबस्सुम