होली में रंग बरसे गुलाल
मिट्टी की सुरभि से
खूब भरा मन
अब धूप में डूबा
मन का ताल
सूरज ने आज समेटा
बची ठंड का जाल
नयी साड़ी में तुम
घर के हर दरवाजे पर
सखियों संग हँसती
बाहर आयी
सखियों को भायी
मस्ती में डूबा
आज नजारा
सबको गीत सुनाया
देर पहर तक आज रात में
कितना खाना पीना
अपने मन में मैल नहीं है
नहा धोकर कल खूब सवेरे
जगना प्रथम पहर
तुम आये घर पर
सबसे मिलकर
अब बेहद खुश हो
-राजीव कुमार झा