कली-कली अब खिल उठी, बहने लगी बयार
मन सबके मचलन लगे, फगुना गई बहार
अंग-अंग में जोश से, तरंग उठें हजार
गीत मधुर सब लग रहे, मन गायें मल्हार
हरितम चुनरी ओढ़ ली,पीत सुमन श्रृंगार
मंद-मंद मुस्कान से, खुशियों का अंबार
नये पल्लव छाय रहे, तरुवर रूप निखार
नयी अदा से झूमते, हर्षित हैं व्यवहार
-आशा दिनकर
नयी दिल्ली