सुर-ताल-सरगम है वही, फ़नकार पर बदले हुए
चेहरा वही, दर्पण वही, व्यवहार पर बदले हुए
पूरे के पूरे गाँव में जलती थी होली एक ही
ख़ुशियाँ अभी दिल में वही, त्योहार पर बदले हुए
दिल भी वही, धड़कन वही, साँसें वही, ख़ुशबू वही
है प्यार तो अपनी जगह, किरदार पर बदले हुए
मौसम, हवा, झरने, नदी, सागर, तलैयाँ, ताल, सब
ऊपर से तो दिखते वही, आधार पर बदले हुए
पुण्यात्मा, धर्मात्मा, अब और इनको क्या कहें
सुंदर-वसन, माथे तिलक, आचार पर बदले हुए
चक्की कहीं ऊखल, कहीं मिट्टी के बर्तन थे सजे
हैं रौनकें अब भी वही, बाज़ार पर बदले हुए
कल भी हमारे साथ था, अब भी हमारे साथ है
ये दर्द तो बदला नहीं, उपचार पर बदले हुए
-सीमा विजयवर्गीय