याद आती रहती हैं वे
अनगिनत बच्चियाँ, लड़कियाँ
जो हो चुकी दरिंदगी का शिकार
नहीं, दरिंदगी नहींं
कोई और शब्द चाहिए
उनके जुल्म को व्यक्त करने के लिए
इससे भारी और सक्षम
जो सही-सही कर सके खुलासा
उनके कुकर्मों का
लेकिन
बहुत सोचने और खोजने पर भी
नहीं मिलता शब्द
न जानकारी में है न शब्दकोश में
याद आती रहती हैं वे सब स्त्रियाँ
हर उम्र की
जिनकी स्त्री-देह ही बन गयी
उन पर अत्याचार का कारण
और तब
सिर्फ विश्वास ही नहीं भरभराता
पीड़ा, गुस्सा, सवाल, प्रतिशोध
का उठता है ज्वार
सब मिलकर खोल देते हैं तीसरी आँख
जिससे साफ दिखता है भविष्य
मन के आकाश में
गूँजती है वाणी
तुम्हारी पीड़ा दे गयी पीड़ा
तो दे गयी ऊर्जा भी
तुम सब शहीद हो गयीं
बना गयीं इतिहास
तुम्हारी शहादत
बनाने लगी है तेजी से
एक नयी दुनिया
-अंजना वर्मा