नंदिता तनुजा
मैंने पीछे मुड़
कभी देखा नहीं
कब मैंने तुमसे
कहा कि
तुमको मुड़कर देखा नहीं
समय का परिंदा
आगे चला
मैं समय के पीछे चलने लगी
ख़ामोशी का सफ़र तन्हा
आँखों ने देखा,
लफ्ज़ कुछ बोलते नहीं
साथ-साथ परछाई मेरी
पग में थोड़े शूल भी चुभे
समय का कहर भी देखा
लेकिन
तुमसें कभी कुछ कहा नहीं
मैंने पीछे मुड़ देखा नहीं
एहसासों की भीड़ लगी भारी
ख्यालों में गुम,
ज़िद्द की निकली सवारी
धुँधले पड़े सारे काले बादल
मन बेबस, तो समझे पागल
एहसानों की सबसे यारी
दिमाग दिखा जब भी
दिल पर भारी
समझ की पारी लिए
सच को बस चलते देखा
लेकिन
झूठ से कभी प्रीत नहीं
मैंने पीछे मुड़ देखा नहीं
मन का कोना खाली
तुम्हारी नज़रें सवाली
होठों पर फ़ीकी मुस्कान
तुम्हारी चुप्पी ने ग़ज़ब
जान ले डाली
सोच-समझ के जुदा हुए
खेल नहीं जो भूल गए
तुमने आदत डाली
एतबार तुमपर वारी
कुछ कहना जरुरी नही
बिन कहे तुम भी सुने नही
मैं कब तुमसे हारी
सब समय की ये पारी है
तुमको जाते देखा
मौन रहे पुकारा नहीं
कि कुछ दूर हुए तो
फ़िर देखा तुमको
लेकिन
सोचा किए तुमको,
फिर कभी बताया नहीं
मैंने पीछे मुड़ देखा नहीं