तेरे शहर में कदम रखने आएँगें।
तू डर मत बस ग़म रखने आएँगें।
तूने देखी है मदहोशी बस हमारी,
अब देख आँखें नम रखने आएँगें।
चलती है ठण्डी लहर तेरे रूख पर,
हम अपनी आह गर्म रखने आएँगें।
जो कायम है कपट से कामयाबी,
उस ताज पर बम रखने आएँगें।
चाहे खरीदकर दबा दे क्रांति अब,
हम मजहब पर जन्म रखने आएँगें।
ये मत सोच की फीकी है दिलदारी,
शोरशराबे का आलम रखने आएँगें।
हैरान ना हो तेरा हूँ इक मुसाफिर,
जाते जाते दर्द कम रखने आएँगें।
-रोहताश वर्मा ‘मुसाफिर’