भोपाल (हि.स.)। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का त्योहार भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। श्रीगणेशोत्सव के दौरान श्रद्धालु अपने घर, मंदिरों एवं अन्य स्थानों में भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं और पूरे दस दिन गणेश भगवान की पूजा पाठ करते हैं। प्राचीन काल से सनातन हिन्दू धर्म में यह मान्यता रही है कि भगवान श्रीगणेश की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और संपन्नता आती है।
ज्योतिषाचार्य रोहित शास्त्री ने बताया कि भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के मध्याह्न काल के दौरान हुआ था, इसीलिए दोपहर का समय गणेश पूजा के लिए ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। शनिवार 7 सितम्बर शाम 5 बजकर 38 मिनट तक भद्रा काल रहेगा। ऐसे में पूजन एवं श्रीगणेश स्थापना किस समय की जानी चाहिए।
ज्योतिषाचार्य रोहित शास्त्री ने बताया कि इस बार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 6 सितंबर शुक्रवार को दोपहर 3 बजकर 02 मिनट पर शुरू होगी, वहीं चतुर्थी तिथि अगले दिन सात सितंबर शनिवार को शाम 5:38 बजे समाप्त होगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सूर्योदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि 7 सितम्बर शनिवार को है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में रहे तो भद्रा पाताल लोक की होती है। भद्रा जब पाताल लोक की होती है तो आप शुभ कार्य कर सकते हैं। 7 सितम्बर शनिवार को भद्रा तुला राशि में है, इसलिए गणेश चतुर्थी पर भद्रा का गणपति की पूजन एवं स्थापना पर कोई प्रभाव नहीं रहेगा। अगर श्रीगणेश जी के भक्त मध्याह्न काल के दौरान श्रीगणेश पूजन करना चाहते हैं तो वह शनिवार 7 सितम्बर सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर 1 बजकर 43 मिनट के मध्य पूजन कर लें।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यान्ह काल में चित्रा और स्वाति नक्षत्र, ब्रह्म योग, विष्टि करण, तुला राशि के चन्द्रमा, सिंह राशि में सूर्य होंगे। इस चतुर्थी पर रात्रि चंद्र दर्शन करना वर्जित है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 6 सितम्बर रात्रि को होगी इसलिए 6 सितम्बर शुक्रवार रात्रि चंद्र दर्शन करना वर्जित है। महंत रोहित शास्त्री ने बताया श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी के दिन तक गणेशोत्सव मनाया जाता है, कुछ श्रीगणेश भक्त तीन दिन या पांच दिन के लिए गणेश जी स्थापित करते हैं। भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार इन दिनों का निर्धारण करते हैं लेकिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक यह उत्सव मनाना चाहिए।
इन बातों का रखना है ध्यान
भगवान गणेश की मूर्ति को घर पर लाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए, श्रीगणेश जी की सूंड बांयी तरफ होना चाहिए, ऐसी मान्यता है कि इस तरह की मूर्ति की उपासना करने पर जल्द मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान गणेश की मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। क्योंकि गणेश जी मुख की तरफ समृद्धि, सुख और सौभाग्य होता है,जबकि पीठ वाले हिस्से पर दुख और दरिद्रता का वास होता है। श्री गणेश जी को कभी भी उस दीवार पर स्थापित न करें जो टॉयलेट की दीवार से जुड़ी हुई हों। कुछ परिवार घरों में चांदी के भगवान गणेश स्थापित करते हैं। अगर आपके भगवान श्रीगणेश चांदी के हैं, तो इसे उत्तर पूर्व या दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थापित करें। आपके घर में जो उत्तरपूर्व कोना हो, उसमें भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करना सबसे शुभ होता है। अगर आपके घर में इस दिशा का कोना न हों तो परेशान न हों, पूर्व या पश्चिम दिशा में ही स्थापित कर लें,कभी भी सीढ़ियों के नीचे भगवान की मूर्ति को स्थापित न करें।
पूजन विधि
गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्द उठकर स्नान करने के बाद,सर्वप्रथम साफ चौकी पर लाल कपडा बिछा कर श्री गणेश एवं माता गौरी जी की मूर्ति एवं जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें, फिर घी का दीपक, धूपबत्ती जलाएं, रोली, कुंकु, अक्षत, पुष्प दूर्वा से श्री गणेश, माता गौरी एवं कलश का पूजन करें। उसके बाद श्री गणेश जी का ध्यान और हाथ मैं अक्षत पुष्प लेकर श्रीगणेश जी के मंत्र को बोलते हुए गणेश जी का आह्वान करें। अक्षत और पुष्प गणेश जी को समर्पित कर देवें। अब श्री गणेश एवं माता गौरी जी को जल, कच्चे दूध और पंचामृत से स्नान करायें (मिट्टी की मूर्ति हो तो सुपारी को स्नान करायें), श्री गणेशजी को नवीन वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। रोली/कुंकु, अक्षत, सिंदूर, इत्र, दूर्वां, पुष्प और माला अर्पित करें। धुप और दीप दिखाए दुर्वा चढ़ाना चाहिए और श्रीगणेश जी के स्तोत्रों एवं मंत्रो का जप करें।
यह क्रम प्रतिदिन जारी रखने एवं नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं उसकी प्रार्थना गणेश जी से करें। पूजा के दौरान विघ्ननायक पर श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए। मनोकामना शीघ्र पूर्ण हो जाती है। श्री गणेश जी को मोदक सर्वाधिक प्रिय हैं। अतः मोदक, मिठाइयाँ, गुड़ एवं ऋतुफल आदि का नैवेद्य अर्पित करे। इसके बाद श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। अंत में गणेश जी की आरती करें, आरती के बाद 1,3,7 परिक्रमा करें और पुष्प अर्पित करेंं। पूजा के बाद अज्ञानतावश पूजा में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान गणेश के सामने हाथ जोड़कर भक्तगण क्षमा याचना करेंगे।