गज़ब प्रेम है न
समय और
प्रतीक्षा की भी
समय निष्ठुर
मगरूर
या फिर
आदत से मजबूर
चलने को रहता है
विवश
और
भावुक जिद्दी प्रतीक्षा
अपनी ही आदत से मजबूर
दिन रैन
अनवरत
ठहरी हुई सी
पलक बिछाए
रहती है
समय की
प्रतीक्षा में
फिर
मजबूर होकर
आना ही पड़ता है
समय को
-किरण सिंह