खटखटाउँ किस चौखट पर
आवाज़ दूँ किस चौराहे पर
इस शहर की
हवा बहरी है
चीखती, कांपती, गूँजती आवाज़े
सहमाती है मेरे आइने को
किसको पुकारूँ,
इस शहर के आइने मे,
अक्श नहीं उभरता
थरथराती आवाजो मे
जिंदगी लड़ रही है
साथ के लिए कब तक पुकारूँ
गूंगी साँसों के शहर मे
इस सन्नाटे के शहर मे
मरी आत्माओं को सुनाने
हर चौखट खटखटाउँगा
चौराहे पर पुकारूँगा
पुकारूँगा
पुकारता ही रहूँगा
आवाज़ के रहने तक
-अमित कुमार मल्ल