जब जब राक्षसों का
पृथ्वी पर आगमन होता है,
उपद्रव बढ़ने लगता है,
तब तब माँ भद्रकाली
रौद्र रूप में
अवतरित होती है
अरे ओ रक्तबीज!
तूने अपना रूप बदला है,
आचरण नहीं।
पिछली बातें भूल गया क्या?
जब माँ काली ने अपना
मुंह खोला था तेरे
रक्त की एक एक बूंद पीने को
तेरे सर्वनाश को
सावधान बहुरूपिए!
अब कोरोना बन के आया है तू
इस मृत्युलोक में
तुझे पता है, आज से
नवरात्रि महोत्सव शुरू है
नववर्ष में,
खुशियों की कृपा बरसाती
लाल झंडा लहराती,
माँ आ गई है पृथ्वी पर,
अब बच नहीं पाएगा तू
अब हमें डर काहे का,
माँ भद्रकाली हमारे साथ जो है
विजय पताका
फहराते हुए,
हम सभी भारतीयों को
चैत्र नववर्ष पर
अभय दान देते हुए
-पूनम शर्मा
मेरठ