नंदिता तनुजा
मैं तो रोज
हिन्दी में लिखती हूँ
माथे पर रोज ही
छोटी सी बिंदी रखती हूँ
नया क्या है
मैंने आज दर्पण से पूछा
दर्पण मुस्कुराते बोला
मैं हिन्दी हूँ
तेरे माथे पे सदा चमके
बस वही बिंदी हूँ
राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने
हिन्दी दिवस है मनाया
मन मेरा भी हर्षाया
गर्व से माथे पर बिंदी को
फिर एक बार सजाया
नए उमंगों के भाव में
हिन्दी मुझमें और भी
निखर आया
अ से अ: तक
क से ज्ञ तक
मन के हर कोने में समाया
सुनों,
तुम हो हिन्दी
मैं हूँ हिन्दी
मेरी कविताएं भी हिन्दी में
हर शब्द हिन्दी की जान
मेरी रुह का सरमाया
कि बिंदियाँ माथे पर और
हिन्दी भारत की शान में दमकती रहें