ज्योतिषाचार्य अनिल पाण्डेय
प्रश्न कुंडली एवं वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ
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नवरात्रि शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पहला नव और दूसरी रात्रि। अर्थात नवरात्रि पर्व 9 रात्रियों का पर्व है। 9 के अंक का अपने आप में बड़ा महत्व है। यह इकाई की सबसे बड़ी संख्या है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की संख्या भी नौ है। 9 का अंक एक ऐसी वस्तु का द्योतक है, जिसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि 9 के अंक को चाहे जिस अंक से गुणा किया जाए प्राप्त अंको का योग भी 9 ही होगा। हमारे शरीर में 9 द्वार हैं- 2 आंख, दो कान, दो नाक, एक मुख, एक मल द्वार तथा एक मूत्र द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन-अर्चन तप यज्ञ हवन आदि से यह नव द्वार शुद्ध होते हैं।
नवरात्रि दो तरह की होती है एक प्रगट नवरात्रि और दूसरी गुप्त नवरात्रि। हम यहां केवल प्रगट नवरात्रि की ही चर्चा करेंगे। दो प्रगट नवरात्रि होती हैं। पहली नवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है। इसे वासन्तिक नवरात्रि भी कहते हैं। दूसरी नवरात्रि अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है। इसे शारदीय नवरात्रि कहते है। यह इस वर्ष आज गुरुवार 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही है।
नवरात्रि में प्रतिपदा के दिन घट की स्थापना करके नवरात्रि व्रत का संकल्प करके गणपति तथा मातृका पूजन किया जाता है। इसके उपरांत पृथ्वी का पूजन कर घड़े में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत, पंचगव्य डालकर उसके मुंह में सूत्र बांधा जाता है। घट के पास में गेहूं अथवा जव का पात्र रखकर वरुण पूजन करके भगवती का आह्वान करना चाहिए। नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
विभिन्न ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि पूजन के कुछ नियम है। जैसे- देवी भागवत के अनुसार अगर अमावस्या और प्रतिपदा एक ही दिन पड़े तो उसके अगले दिन पूजन और घट स्थापना की जाती है। विष्णु धर्म नाम के ग्रंथ के अनुसार सूर्योदय से 10 घटी तक प्रातःकाल में घटस्थापना शुभ होती है। रुद्रयामल नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रातःकाल में चित्र नक्षत्र या वैधृति योग हो तो उस समय घट स्थापना नहीं की जाती है, अगर इस चीज को टालना संभव ना हो तो अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी। देवी पुराण के अनुसार देवी की देवी का आवाहन प्रवेशन नित्य पूजन और विसर्जन यह सब प्रातःकाल में करना चाहिए। निर्णय सिंधु नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रथमा तिथि वृद्धि हो तो प्रथम दिन घटस्थापना करना चाहिए।
नवरात्रि के वैज्ञानिक पक्ष की तरफ अगर हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि दोनों प्रगट नवरात्रों के बीच में 6 माह का अंतर है। चैत्र नवरात्रि के बाद गर्मी का मौसम आ जाता है तथा शारदीय नवरात्रि के बाद ठंड का मौसम आता है। हमारे महर्षियों ने शरीर को गर्मी से ठंडी तथा ठंडी से गर्मी की तरफ जाने के लिए तैयार करने हेतु इन नवरात्रियों की प्रतिष्ठा की है। नवरात्रि में साधक पूरे नियम कानून के साथ अल्पाहार एवं शाकाहार या पूर्णतया निराहार व्रत रखता है। इसके कारण शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है, अर्थात शरीर के जो भी विष तत्व है वे बाहर हो जाते हैं। पाचन तंत्र को आराम मिलता है। लगातार 9 दिन के आत्म अनुशासन की पद्धति के कारण मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है। जिससे डिप्रेशन माइग्रेन हृदय रोग आदि बिमारियों के होने की संभावना कम हो जाती है।
देवी भागवत के अनुसार सबसे पहले माँ ने महिषासुर का वध किया। महिषासुर का अर्थ होता है ऐसा असुर जोकि भैंसें के गुण वाला है अर्थात जड़ बुद्धि है। महिषासुर का विनाश करने का अर्थ है समाज से जड़ता का संहार करना। समाज को इस योग्य बनाना कि वह नई बातें सोच सके तथा निरंतर आगे बढ़ सके। समाज जब आगे बढ़ने लगा तो आवश्यक था कि उसकी दृष्टि पैनी होती और वह दूर तक देख सकता। अतः तब माता ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि दी। धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुंधली दृष्टि। इस प्रकार माता ने धूम्र लोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि प्रदान की।
समाज में जब ज्ञान आ जाता है उसके उपरांत बहुत सारे तर्क वितर्क होने लगते हैं। हर बात के लिए कुछ लोग उस के पक्ष में तर्क देते हैं और कुछ लोग उस के विपक्ष में तर्क देते हैं। जिससे समाज की प्रगति अवरुद्ध जाती है। चंड मुंड इसी तर्क और वितर्क का प्रतिनिधित्व करते हैं। माता ने चंड मुंड की हत्या कर समाज को बेमतलब के तर्क वितर्क से आजाद कराया। समाज में नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मनोग्रंथियां आ जाती हैं। रक्तबीज इन्हीं मनोग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार एक रक्तबीज को मारने पर अनेकों रक्तबीज पैदा हो जाते हैं, उसी प्रकार एक नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने पर हजारों तरह की नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। जिस प्रकार सावधानी से रक्तबीज को माँ दुर्गा ने समाप्त किया, उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को भी सावधानी के साथ ही समाप्त करना पड़ेगा।
शारदीय नवरात्र में प्रतिपदा को माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। उसके उपरांत द्वितीया को माँ ब्रह्मचारिणी, तृतीया को माँ चंद्रघंटा, चतुर्थी को माँ कुष्मांडा, पंचमी को माँस्कंदमाता, षष्टी को माँ कात्यायनी, सप्तमी को माँ कालरात्रि, अष्टमी को माँ महागौरी और नवमी को माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दिनों में हमें मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध रहना चाहिए। विशेष तौर पर साधक को किसी भी प्रकार के मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। नवरात्र में लोग बाल बनवाना दाढ़ी बनवाना नाखून काटना पसंद नहीं करते हैं। शुद्ध रहने के लिए आवश्यक है कि हम मांसाहार, प्याज, लहसुन आदि तामसिक पदार्थों का त्याग करें। तला खाना भी त्याग करना चाहिए।
अगर आपने नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया है या अखंड ज्योत जला रहे हैं तो आपको इन दिनों घर को खाली छोड़कर नहीं जाना चाहिए। नवरात्रि में प्रतिदिन हमें साफ कपड़े साफ और धुले हुए कपड़े पहनना चाहिए। एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि इन 9 दिनों में नींबू को काटना नहीं चाहिए, क्योंकि अगर आप नींबू काटने का कार्य करेंगे तो तामसिक शक्तियां आप पर प्रभाव जमा सकती हैं। विष्णु पुराण के अनुसार नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोना निषेध है। अगर आप इन दिनों माँ के किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं, पूजा की शुद्धता पर ध्यान दें। जाप समाप्त होने तक उठना नहीं चाहिए। इन दिनों शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।
नवरात्रि में रात्रि का दिन से ज्यादा महत्व है। इसका विशेष कारण है। नवरात्रि में हम व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना, बीज मंत्रों का जाप कर सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। हम देखते हैं अगर हम दिन में आवाज दें तो वह कम दूर तक जाएगी, परंतु रात्रि में वही आवाज दूर तक जाती है। दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को रेडियो तरंगों को रोकती है, अगर हम दिन में रेडियो से किसी स्टेशन के गाने को सुनें तो वह रात्रि में उसी रोडियो से उसी स्टेशन के गाने से कम अच्छा सुनाई देगा। इसी तरह शंख की आवाज भी घंटे और शंख की आवाज भी दिन में कम दूर तक जाती है, जबकि रात में ज्यादा दूर तक जाती है। दिन में वातावरण में कोलाहल रहता है, जबकि रात में शांति रहती है। इसलिए नवरात्रि में सिद्धि हेतु रात का ज्यादा महत्व दिया गया है।
नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है की सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है। जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है। समाज को जिस प्रकार कमलासन की आवश्यकता है, उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत, वृषभ अर्थात गोवंश, गधा अर्थात बोझा ढोने वाली ताकत तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।