Wednesday, November 6, 2024
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दीपोत्सव का पर्व दीपावली: हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार और इसका मुख्य पौराणिक संदर्भ

एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव
ज्योतिष केसरी

दीपावली हिन्दू सनातन धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पूरे हर्षोल्लास के साथ न केवल देश में बल्कि विदेश में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः भगवती लक्ष्मी देवी को समर्पित है। किंतु इस दिन भगवान गणेश, माँ सरस्वती और देवी महाकाली की भी पूजा की जाती है।

संपूर्ण दीपावली पर्व असल में पांच दिवसीय त्यौहार है। इसमें प्रथम दिन धनतेरस मनाया जाता है, जिसमें देवों के वैद्य भगवान धनवंतरी जी की पूजा की जाती है। दूसरे दिन रूप चतुर्दशी अथवा नरक चतुर्दशी मनाई जाती है जिसमें यम देवता और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है।

तीसरे दिन मुख्य त्योहार दीपावली मनाई जाती है। इस दिन घर को बिजली के सुंदर बल्ब की लड़ियों, मोमबत्तियों और मिट्टी के दीपक जलाकर घर को प्रकाशित किया जाता है। इसके अलावा, सुंदर रंगोली, रंग बिरंगे तोरण, तथा सुंदर पुष्प मालाओं से घर को सजाया जाता है और लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी की जाती है। संध्या काल में लक्ष्मी पूजन के उपरांत मिठाई एवम पकवान बांटे जाते हैं और खाये जाते हैं। रात्रि काल में पटाखे छोड़े जाते हैं और रात्रि जागरण करके लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं। इस दिन लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी और ज्ञान की देवी भगवती सरस्वती के भी पूजन की परंपरा है। क्योंकि ऐसा माना जाता है लक्ष्मी यानी कि धन के साथ बुद्धि , विवेक और ज्ञान यानि कि गणेश और सरस्वती जी की भी आवश्यकता होती है।

दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इसमें गोवर्धन पर्वत के साथ भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। फिर धनतेरस के पांचवें दिन भैया दूज बनाने की प्रथा है, जिसमें बहनें अपने भाई की लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं और पूजन करती हैं। इस दिन देश के कई लोग विशेष तौर पर कायस्थ समाज के लोग धर्मराज चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं। जिसे कलम दवात की पूजा भी कहा जाता है।

पूर्वोत्तर हिस्सों में विशेष तौर पर बंगाली समाज के लोग अमावस्या के दिन महा निशा काल में भगवती काली की पूजा और आराधना करते हैं।

इसके अलावा अमावस्या को पितरों की तिथि भी कहा जाता है। अतः इस दिन पितरों का पूजन भी करते हैं । उनके निमित्त दान पुण्य भी किया जाता है। सायं काल और रात्रि में आकाश में आकाश दीप छोड़े जाते हैं। ऐसा माना जाता है रोशनी से भारी यह आकाशदीप हमारे पितरों को विष्णु लोक का मार्ग दिखाते हैं।

क्यों मनाते हैं दीपावली
दीपावली का त्योहार बनाने की पीछे कुछ पौराणिक संदर्भ है। कहां जाता है कि इस दिन भगवान राम लंका विजय करके अयोध्या वापस लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरी अयोध्या को दीप मालाओं से सजाया था। तब से प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके अलावा कार्तिक कृष्ण की चतुर्दशी तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके चंगुल से 14 हजार रानियों को छुड़ाया था। उनकी याद में इस दिन नरक चतुर्दशी बनाई जाती है और भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।

दीपावली की अमावस्या का अपना विशेष महत्व है। इस दिन व्यापारी वर्ग अपने नए बही-खातों का शुभारंभ करते हैं। वहीं अर्द्ध रात्रि का मुहूर्त तांत्रिकों और साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।

दीपावली का मुख्य पौराणिक संदर्भ
एक बार सनत कुमार ने शौनकादि ऋषि-मुनियों से पूछा- दीपावली के त्योहार पर लक्ष्मी जी के अलावा अन्य देवी-देवताओं का पूजन क्यों किया जाता है? तब ऋषियों ने बताया की लक्ष्मी ऐश्वर्या और भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। जहां पर इनका वास होता है वहां सुख-समृद्धि एवं आनंद मिलता है। इसकी कथा यह है कि- एक बार दैत्य राज बलि ने अपने बाहु बल से अनेक देवी देवताओं सहित लक्ष्मी जी को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था। तब कार्तिक की अमावस्या को श्री हरि भगवान विष्णु ने वामन का अवतार लेकर राजा बलि से आकाश और पाताल सब वापस ले लिया था और लक्ष्मी जी सहित सभी देवी देवताओं को राजा बलि के कारागार से मुक्त कराया था। उसके बाद विष्णु लक्ष्मी जी के साथ शयन के लिए क्षीरसागर में चले गए।
इसलिए अन्य देवी देवताओं के साथ लक्ष्मी जी के पूजन का विधान बनाया गया है। जो भी व्यक्ति उनका स्वागत उत्साह पूर्वक करके स्वच्छ कमल शय्या प्रदान करता है, पूजन करता है, उनके घर में लक्ष्मी जी का स्थाई वास हो जाता है।

2024 दीपावली के पूजन की तिथि
इस वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को 3: 52 से शुरू होगी। और तिथि का समापन 1 नवंबर की शाम 6: 16 पर होगा। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या पर रात्रि पूजन का विधान है। यानी 31 अक्टूबर को पूरी रात अमावस्या तिथि रहेगी, लेकिन 1 नवंबर की रात से पहले वह समाप्त हो जाएगी। 1 नवंबर की रात्रि को प्रतिपदा तिथि होगी। इसलिए रात्रि व्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूबर को ही होगी और दीपावली लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को ही होगा।

पूजन मुहूर्त
31 अक्टूबर का पहला मुहूर्त प्रदोष काल पूजन मुहूर्त में शाम 5:36 बजे से रात्रि 8:15 बजे तक रहेगा। लक्ष्मी पूजन सदैव स्थिर लग्न में किया जाता है इसलिए वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजन होगा। इस दौरान स्थिर लग्न वृषभ रहेगा। लक्ष्मी पूजन का महा निशीथ मुहूर्त 31 अक्टूबर को रात 11: 39 मिनट से लेकर देर रात 12:31 बजे तक है। इस समय महाकाली, महा सरस्वती और महालक्ष्मी पूजन किया जाएगा।

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