Sunday, March 23, 2025
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Jaya Ekadashi 2025: जया एकादशी व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त और पारण का समय

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन-अर्चन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस जन्म के सभी पापों का नाश होता है।

माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया (अजा) एकादशी के नाम से जाना जाता है।  एकादशी का दिन भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ के समतुल्य फल की प्राप्ति होती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पद्म पुराण और भविष्योत्तर पुराण में भी जया एकादशी का वर्णन किया गया है, वहीं सनातन मान्यता अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को जया एकादशी के व्रत के बारे में बताया था। इस व्रत को करने से पिछले जन्म में किए गए पापों से भी छुटकारा मिल जाता है।

तिथि

पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी शुक्रवार 7 फरवरी 2025 को रात 9:26 बजे आरंभ होगी और अगले दिन शनिवार 8 फरवरी 2025 को रात 8:15 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार जया एकादशी का व्रत शनिवार 8 फरवरी के दिन रखा जाएगा। वहीं जया एकादशी व्रत का पारण रविवार 9 फरवरी 2025 को सुबह 7:04 बजे से सुबह 9:17 बजे के बीच किया जा सकेगा।

शुभ मुहूर्त

जया एकादशी व्रत के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा सूर्योदय के समय से ही कर सकते हैं, क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त शनिवार 8 फरवरी को सुबह 5:21 बजे से 6:13 बजे तक रहेगा, इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:13 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। वहीं रवि योग सुबह 7:05 बजे से शाम 6:07 बजे तक रहेगा।

पूजा विधि

पौराणिक मान्यता के अनुसार एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि सूर्यास्त के बाद से होती है। दशमी तिथि से ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए। साथ ही दशमी को एक वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें। इसके बाद कलश उस पर स्थापित करें। ध्यान रहे व्रत से पहली रात्रि में सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन पंचपल्लव कलश में रखकर भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति की स्थापना करें। अब धूप, दीप, चंदन, फल, फूल व तुलसी आदि से भगवान श्री हरि एवं माता लक्ष्मी की पूजा करें। द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।

भगवान श्री हरि विष्णु का रूपम मंत्र

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

भगवान श्री हरि विष्णु का गायत्री मंत्र

ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन मंत्र
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

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