हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु एवं माता पार्वती का पूजन-अर्चन करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों का नाश होता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार शुक्रवार 10 जनवरी 2025 को पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पड़ रही है। इस एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी, बैकुंठ एकादशी अथवा मुक्कोटी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
सनातन मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की शास्त्र सम्मत विधि से पूजा करने पर नि:संतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में इस व्रत को महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत को रखने से योग्य संतान की कामना पूर्ण होती है। वहीं ये व्रत संतान को हर संकट से बचाने वाला माना गया है।
ये भी मान्यता है कि अगर आप लंबे समय से धन के अभाव का सामना कर रहे हैं, तो पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी का विधिवत पूजन करें। भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से धन का अभाव दूर होगा और धन आगमन के योग बनेंगे।
पूजा मुहूर्त एवं शुभ योग
इस बार पौष मास की पौष पुत्रदा एकादशी शुक्रवार 10 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ गुरुवार 9 जनवरी को दोपहर 12:22 बजे होगा और एकादशी तिथि का समापन शुक्रवार 10 जनवरी को सुबह 10:19 बजे होगा। उदयातिथि के अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत शुक्रवार 10 जनवरी को रखा जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी पर शुक्रवार 10 जनवरी को पूजा मुहूर्त सुबह 8:34 बजे से सुबह 11:10 तक रहेगा। पौष पुत्रदा एकादशी पर पूरे दिन ब्रह्म योग का विशेष संयोग बन रहा है, शास्त्रों के अनुसार ब्रह्म योग में दान करने का विशेष महत्व है। वहीं पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 11 जनवरी को सुबह 7:15 बजे से 8:21 बजे के बीच किया जाएगा। शनिवार 11 जनवरी को द्वादशी तिथि सुबह 8:21 बजे समाप्त हो जाएगी। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही करना चाहिए, इसलिए द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण कर सकते हैं।
पूजा विधि
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के दिन सुबह सूर्योदय के पूर्व स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब घर के पूजा स्थल पर या पास के किसी मंदिर में जाकर व्रत का संकल्प लें और भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान श्रीहरि विष्णु को पीले फल, पीले पुष्प, पंचामृत, तुलसी आदि समस्त पूजन सामग्री पूरे भक्ति भाव से अर्पित करने और भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी के मंत्रों का उच्चारण करें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ होता है।