Monday, November 18, 2024
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Saphala Ekadashi 2024: नववर्ष की पहली एकादशी पर इस तरह करें भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा, हर मनोकामना होगी पूरी

सनातन संस्कृति में भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना के लिए एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। सनातन पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार पौष महीने के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार सफला एकादशी का व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान श्री हरि विष्‍णु की कृपा से जीवन में अपार सुख-समृद्धि आती है। इस बार सफला एकादशी रविवार 7 जनवरी 2024 को पड़ रही है। इस व्रत के प्रभाव से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है। जिस प्रकार सभी व्रतों में एकादशी का व्रत विशेष माना जाता है, उसी प्रकार यज्ञों में अश्वमेध यज्ञ सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

पूजा एवं पारण मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम सफला एकादशी है। नए साल की पहली सफला एकादशी रविवार 7 जनवरी 2024 को है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शनिवार 6 जनवरी की अर्धरात्रि 12:41 बजे यानि रविवार 7 जनवरी 2024 को 12:41 AM बजे शुरू होगी और 7 जनवरी को अर्धरात्रि 12:46 बजे यानि 8 जनवरी 2024 को 12:46 AM बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार सफला एकादशी का व्रत 7 जनवरी 2024 को रखा जायेगा, वहीं व्रत का पारण सोमवार 8 जनवरी 2024 को सुबह 7:15 बजे से सुबह 9:20 बजे के बीच किया जाएगा।

सनातन मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत करने से सारे कार्य सफल हो जाते हैं, इसलिए इसे सफला एकादशी कहा गया है। मनुष्य को पांच सहस्र वर्ष तपस्या करने से जिस पुण्य का फल प्राप्त होता है, वही पुण्य श्रद्धापूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का उपवास करने से मिलता है। सफला एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 7:15 बजे से रात 10:03 बजे तक है। ऐसे में आपको सफला एकादशी व्रत की पूजा सर्वार्थ सिद्धि योग में करनी चाहिए। इस योग में किए गए कार्य सफल सिद्ध होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

पूजा विधि

सफला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व ध्यान करके व्रत करने का संकल्प किया जाता है और विधि विधान के साथ भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। एकादशी व्रत से एक दिन पहले दशमी की रात को तामसिक भोजन न करें। शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीहरि विष्णु का दक्षिणावर्ती शंख में दूल और केसर मिलाकर अभिषेक करें। चंदन से भगवान श्रीहरि को तिलक लगाएं और वस्त्र, फूल, सुपारी, नारियल, फल, लौंग, अक्षत, मिठाई, धूप, अर्पित करें। दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर पंचामृत बनाएं और तुलसी के साथ भोग लगाएं। एकादशी की कथा पढ़े और भगवान श्रीहरि विष्णु का स्मरण करें। भगवान श्रीहरि विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की विधि-विधान से पूजा करें। पूजा में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इसके बाद आरती करें, तभी पूजा सम्पन्न होती है। किसी गरीब को सामर्थ्‍य अनुसार दान करें। शाम को पूजा स्थान पर घी का चौमुखी दीपक जलाएं।

सफला एकादशी के दिन अवश्य करें इन मंत्रों का जाप

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः
ॐ नमो नारायणाय

लक्ष्मी विनायक मंत्र
दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।

धन-वैभव मंत्र
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती॥

लक्ष्मी स्त्रोत
श्रियमुनिन्द्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥

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