नवरात्रि का पर्व आदिशक्ति, जगतजननी माँ दुर्गा की आराधन एवं उपासना का पर्व है। नवरात्रि यूँ तो वर्ष में 4 बार आती है, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व सबसे अधिक है। हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्र चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होती है। इस साल शारदीय नवरात्रि गुरुवार 3 अक्टूबर 2024 से आरंभ होंगी।
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ गुरुवार 3 अक्टूबर को प्रात: 12:19 (AM) बजे से होगा और इसका समापन अगले दिन 4 अक्टूबर की प्रात: 2:58 (AM) बजे पर होगा। अत: उदया तिथि के अनुसार शारदीय नवरात्रि गुरुवार 3 अक्टूबर 2024 आरंभ होगी और नवरात्रि का समापन शनिवार 12 अक्टूबर 2024 को होगा।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि में घट स्थापना का विशेष महत्व होता है। साल 2024 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त गुरुवार 3 अक्टूबर 2024 को सुबह 6:19 बजे से सुबह 7:23 बजे तक है। इसके अलावा घट स्थापना अभिजीत मुहुर्त में भी की जा सकती है। गुरुवार 3 अक्टूबर को अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:46 बजे से लेकर दोपहर 12:33 बजे तक रहेगा।
पंचांग के अनुसार नवरात्रि की तिथियां
गुरुवार 3 अक्टूबर 2024 (प्रतिपदा): घटस्थापना, माँ शैलपुत्री
शुक्रवार 4 अक्टूबर 2024 (द्वितीया): माँ ब्रह्मचारिणी
शनिवार 5 अक्टूबर 2024 (तृतीया): माँ चन्द्रघण्टा
रविवार 6 अक्टूबर 2024 (तृतीया) माँ चन्द्रघण्टा
सोमवार 7 अक्टूबर 2024 (चतुर्थी): माँ कूष्माण्डा
मंगलवार 8 अक्टूबर 2024 (पंचमी): माँ स्कंदमाता
बुधवार 9 अक्टूबर 2024 (षष्ठी): माँ कात्यायनी
गुरुवार 10 अक्टूबर 2024 (सप्तमी): माँ कालरात्रि
शुक्रवार 11 अक्टूबर 2024 (अष्टमी): महाष्टमी, माँ महागौरी, कन्या पूजा
शनिवार 12 अक्टूबर 2024 (नवमी): महानवमी, माँ सिद्धिदात्री, विजयादशमी, दशहरा, नवरात्रि पारण, दुर्गा विसर्जन
विजयादशमी तिथि एवं शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होती है। शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन विजयादशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार आश्विन मास की दशमी तिथि का आरंभ शनिवार 12 अक्टूबर को सुबह 10:58 बजे से होगा और दशमी तिथि का समापन रविवार 13 अक्टूबर सुबह 9:08 बजे होगा। पंचांग के अनुसार दशहरा पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 2:03 बजे से लेकर दोपहर 2:49 बजे तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव का कहना है कि किसी भी पूजन अनुष्ठान में रंगों और नवग्रहों का विशेष महत्व होता है। देवी भागवत में उल्लेख है कि सम्पूर्ण सृष्टि की जननी और पूरे ब्रह्मांड में संचारित ऊर्जा के केंद्र में यही माँ आद्या शक्ति हैं। और हमारे नवग्रह भी इन्ही शक्ति के 9 रूपों से संचालित होते हैं।
आइये, हम जानते हैं कि देवी के विभिन्न रूपों की पूजा किस रंग के वस्त्र पहन के की जाती है और देवी के कौन से रूप के पूजन से किस ग्रह को अनुकूल बनाया जा सकता है।
शैलपुत्री
पर्वत राज हिमवान की पुत्री माँ पार्वती का यह मूल स्वरूप है। माँ के दाएं हांथ में त्रिशूल और बाएं हांथ में कमल पुष्प है। इनकी सवारी सिंह है। माँ शैलपुत्री की पूजा पीले रंग के वस्त्रों को पहन के की जानी चाहिए। इनकी पूजा से गुरु ग्रह को मजबूती मिलती है व गुरु जनित दोषों से मुक्ति मिलती है।
ब्रह्मचारिणी
माँ का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। माँ के दाएं हांथ में माला और बाएं हाँथ में कमण्डल है। इनका पूजन हरे रंग के वस्त्र पहन कर करना चाहिए। ग्रहों के राजकुमार बुध पे इनका शासन होता है। अतः बुध जनित दोषों का शमन करती हैं।
चन्द्रघण्टा
अति कांति मय माँ चन्द्रघण्टा के गले मे घण्टे के आकार का चन्द्रमा सुशोभित होता है। इनकी क्रीम, हल्के सफेद रंग के कपड़े पहन कर पूजा करनी चाहिए। माँ के पूजन से शुक्र और चन्द्र सम्बन्धी दोष समाप्त होते हैं और परिवार में प्रेम, ऐश्वर्य, सुख-शान्ति वास करती है।
कूष्मांडा
माँ कूष्माण्डा को समस्त ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। माँ की आठ भुजाओं में अस्त्र, शस्त्र, अमृत कलश और कमल सुशोभित होता है। नारंगी रंग के कपड़े धारण करके पूजा करने से माँ प्रसन्न होती हैं और ग्रहों के राजा सूर्य को बल प्रदान करती हैं, समाज मे मान, प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं।
स्कंदमाता
शिव और पर्वतीपुत्र स्कंद या भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में इन का पूजन होता है। माँ की पूजा सफेद रंग के वस्त्र पहन कर की जानी चाहिए। स्कंदमाता के पूजन से ज्ञान और विवेक के ग्रह शुक्र को बल मिलता है। और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कात्यायनी
महिषासुर का वध करने हेतु माँ दुर्गा नें ऋषि कात्यायन के घर कात्यायनी के रूप में जन्म लिया था। अष्ट भुजाओं वाली ये माता महिषासुर मर्दिनी कहलाती हैं। इनकी पूजा लाल रंग के वस्त्र पहन कर करनी चाहिए। ग्रहों के सेनापति मंगल ग्रह माँ के पूजन से प्रसन्न होते हैं।
कालरात्रि
माँ कालरात्रि का घोर रूप सभी दुष्टों का सर्वनाश करने वाला है। इनके स्मरण मात्र से मनुष्य भयमुक्त होकर अभय और मोक्ष प्राप्त करता है। देवी का पूजन नीले रंग के वस्त्र पहन कर करना चाहिए। माँ कालरात्रि शनि ग्रह की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनके पूजन से शनि प्रसन्न होकर अपनी पीड़ा से मुक्त करते हैं।
महागौरी
कपूर के समान उज्ज्वल रंग वाली महागौरी का सुंदर शांत रूप मनुष्यो के समस्त कष्टों को हरने वाला है। गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करके गुलाबी पुष्पों से पूजन करने पर माँ प्रसन्न होती हैं। इनकी पूजा से राहु ग्रह शांत होकर जीवन मे उन्नति प्रदान करते हैं।
सिद्धिदात्री
समस्त सिद्धियो की अधिष्ठात्री देवी माँ सिद्धिदात्री हैं। 4 भुजाओं वाली माँ कमल पर विराजती हैं। इन देवी का पूजन बैंगनी रंग के वस्त्र पहन कर करने चाहिए। अध्यात्म और मोक्ष प्रदान करने वाला केतु ग्रह माँ सिद्धिदात्री की पूजन से प्रसन्न होते हैं।